चंपा पहाड़न - 1 Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चंपा पहाड़न - 1

चंपा पहाड़न

1

  आसमान की साफ़-शफ्फाक सड़क पर उन रूई के गोलों में जैसे एक सुन्दर सा द्वार खुल गया | शायद स्वर्ग का द्वार ! और उसमें से एक सुन्दर, युवा चेहरा झाँकने लगा, उसने देखा चेहरे ने अपना हाथ आगे की ओर किया जिसमें से रक्त टपकता हुआ एक गाढ़ी लकीर सी बनाने लगा, उसका दिल काँप उठा | हालांकि वह इस दृश्य की साक्षी नहीं थी लेकिन यह भी इतना ही सच था कि वह दृश्य बारंबार उसकी आँखों के सपाट धरातल को बाध्य करता कि वह उसकी साक्षी बने ! उसका मन वृद्ध होते हुए शरीर के साथ कॉप-काँप उठता | कुछ ही देर में हाथ से टपकते हुए रक्त का कोई निशान न रहा, न जाने अचानक कहाँ ग़ायब हो गया और केवल चंपा का मुस्कुराता चेहरा उसके सामने खिल उठा |

‘पहाड़न माँ जी का चेहरा!’ फिर से बिन बुलाए अतिथि की भांति प्रवेश कर गईं थीं वे! सामने से कटे हुए हाथ के ग़ायब हो जाने पर उसे अब यह सब अच्छा लगने लगा | मीलों दूर की लंबी यात्रा कर हारे-थके पथिक को जैसे किसी घने पेड़ की छाँव मिल जाए या चलते –चलते किसी मुसाफिर को बेहद प्यास लगने पर कोई प्याऊ दिखाई दे जाए, कुछ ऐसे !

“बाबू जी !” उसने उनकी आवाज़ सुनी और चहककर अपनी विस्मित आँखें आसमानी पटल के उस छोर पर गडा दीं जहाँ से आवाज़ का कंपन उसे छूने लगा था | अरे ! वह तो बिलकुल भूल ही गई कि उम्र के जिस पायदान पर खड़ी है, वहाँ से उसके लिए उस अनजाने, अनपहचाने द्वार में प्रविष्ट होने में कुछ अधिक समय नहीं है |लेकिन न जाने कैसे वह पाँच-सात वर्ष की नन्ही बच्ची में परिवर्तित होती जा रही थी और आकाशी द्वार से झाँकता खूबसूरत चेहरा उसका हाथ पकड़कर उन गलियों में ले जाने लगा था जिनमें से निकले हुए उसे न जाने कितना लंबा समय व्यतीत हो चुका था, इस समय कोई व्यथित कर देने वाला दृश्य नहीं था, वह न जाने किस भावलोक में विचरण करने लगी ! कितना अजीब होता है न मनुष्य का मन ! पल में तोला, पल में माशा ! वह सच में अपने आपको एक नन्ही बच्ची महसूस कर रही थी, गुलाबी स्मोकिंग वाली घेरदार फ्रॉक पहने, घने बालों की दो चोटियाँ लटकाए जिनमें गुलाबी रंग के रिबिन से फूल बनाए गये थे ! वह एक सुन्दर, प्यारी शैतान बच्ची थी जिसमें किसी को भी अपनी ओर आकृष्ट कर लेने की ज़बरदस्त जन्मजात प्रतिभा थी | 

उसके लंबे बालों से भी एक कहानी जुड़ी थी | उसकी माँ ने उसके बाल कटवा दिए थे, घने सुन्दर घुंघराले बालों में उसका चेहरा बहुत प्यारा लगता, बिलकुल किसी सम्मोहित करने वाली जादूगरनी का सा, बिलकुल भोला –भाला और बातें ! वे तो और भी मोह लेने वाली ! तभी तो पहाड़न माँ जी ने अपने मसीहा ‘बाबू जी’ का नाम उसे यूँ ही चलते-फिरते दे दिया था जिनके बारे में लोग बेकार की अफलातून बातें उड़ाते रहते थे | जहाँ उसकी नानी का घर था वहीं एक अंग्रेज़ी स्कूल खुला था जिसमें एक युवती अध्यापिका थीं रमा सूद !वह नानी के छज्जे पर खड़ी होकर सूद टीचर को स्कूल के अहाते में आते –जाते देखती | छोटी सी थी पर नज़र खूब तेज़! सूद टीचर की दो लंबी चोटियों ने उसे सम्मोहित कर रखा था |लंबी, छरहरी सूद टीचर की चोटियों जैसी सुन्दर, सफाई से बनी चोटियाँ उसने किसी की भी नहीं देखी थीं | उसने उनकी चोटी का कभी भी एक भी बाल चोटी से निकला हुआ नहीं देखा था | कम उम्र की लड़की सी गोरी-चिट्टी मिस सूद की सुंदर, सफाई से बनी चोटियों ने मानो उसके ऊपर कोई जादू कर रखा था | वह स्कूल के खुलने के समय और स्कूल के बंद होने के समय नानी के छज्जे पर जाने की ज़िद करती | जब उससे इसका कारण पूछा गया तब उसने बताया कि उसे मिस सूद के जैसी चोटियाँ बनवानी हैं|न जाने कितनी बार उसने अपनी माँ और नानी को दिखाकर वैसी चोटियाँ बनाने की ज़िद की थी, यहाँ तक कि एक-दो बार तो वह जमीन पर भी लोटपोट हो गई मगर कटे हुए बालों को माँ कैसे दो चोटियों में संवारती ? कठिन था लेकिन उसकी जिद के आगे जैसे-तैसे करके दो चोटियों का बनना शुरू हुआ, घुंघराले बालों में चोटियाँ बहुत कठिनाई से बन पातीं और बाल फूसड़ों की तरह झांकते हुए चुगली कर रहे होते | कोई चारा न पाकर माँ ने उसकी चोटियाँ बनानी शुरू कर दी थीं, वे तेल-पानी को मिलाकर उसके बाल सीधे करने का प्रयास करतीं लेकिन घुंघराले बालों का सीधा होना इतना आसान कहाँ था | धीरे-धीरे साल भर में उसके बाल इतने लंबे हुए कि दो–चार अलबेटे देकर बालों को चोटी के आकार में बनाया जा सके| वह बड़ी होती रही, बाल लंबे घने होते रहे और चोटियाँ बरक़रार रहीं लेकिन घुंघराले बालों में मिस सूद के जैसी सफाई वाली चोटियाँ बनवाने का उसका प्यारा, भोला सा स्वप्न कभी पूरा न हो सका | हाँ, उसकी चोटियाँ दिन ब दिन लंबी ज़रूर होती रहीं |अब वह उन्हें अपने फ्रॉक के रंग के रीबनों से सजा हुआ देखकर प्रसन्न हो सकती थी |

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क्रमश..